हे तुझे अशा वेळी लाजणे बरे नाही चेहरा गुलाबाने झाकणे बरे नाही जे तुला दिले होते तेच ओठ दे माझे मागचे जुने देणे टाळणे बरे नाही ऐक तू ज़रा माझे…सोड मोह स्वप्नांचा आजकाल स्वप्नांचे वागणे बरे नाही जाहली न कोणाची सांग राखरांगोळी ? आपुलीच रांगोळी काढ़णे बरे नाही आज मोकळे बोलू ! आज मोकळे होऊ ! जीव एकमेकांचा जाळणे बरे नाही कालचा तुझा माझा चंद्र वेगळा होता… हे उन्हात आलेले चांदणे बरे नाही मैफिलीत या माझ्या पहातेस का खाली ? हाय, लाजणारयाने जागणे बरे नाही…
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला, हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला, आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है, कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१। आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला, छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ, एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२। आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला, भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला, और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ, अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३। सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला, मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४। दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला, भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला, नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ, अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५। ...